सज - संवर कर आयो कन्हैया
बजाने मुरली के सुर ओ ताल साँवला भय तो क्या हुआ
भाय गोपियों के मन को तू गोपाल
चोरी छुप्पे खायो माखन
ओ मेरे नटखट नन्दलाल
सुनने तेरी मुर्ली को
आ गिरो वो आकाश
निकले सुर जो तेरी बाँसी ते
जी उठो ये जग -संसार
लोचन तेरे , मानो सागर
केश जैसे जगत श्रृंगार
वाणी तेरी जैसे अमृत
और हस्त तेरे रचनाकार
नटखट है तू बड़ो कन्हैया
काहे करे शरारत अपार
छुपा कर वस्त्र गोपियों के
देखे उन्हें जमुना पार
काहे करे शरारत अपार
छुपा कर वस्त्र गोपियों के
देखे उन्हें जमुना पार
- Ashwarya pratap singh
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