होकर सवार इस जीवन रुपी नौका में ,
कर रहा था इंतज़ार दुसरे छोर का ,
भटक कर मार्ग अपनी मंजिल से ,
कर रहा था इंतज़ार दुसरे छोर का ,
भटक कर मार्ग अपनी मंजिल से ,
कोस रहा था उन लहरों को ,
बनी थी काँटा जो मेरे पथ का
रखकर पतवार एक सहारे,
लगा में देखने उस चींटी को,
कर रही थी संघर्ष जो कठोर ,
बनी थी काँटा जो मेरे पथ का
रखकर पतवार एक सहारे,
लगा में देखने उस चींटी को,
कर रही थी संघर्ष जो कठोर ,
उठाकर नाज के एक दाने को ,
करके नमन उसके आत्मविश्वास को
फिर थाम लिया मैंने पतवार
करता रहा संघर्श में भी , अपनी मंजिल पाने को
Copyright © Ashwarya pratap singh, 2012
करके नमन उसके आत्मविश्वास को
फिर थाम लिया मैंने पतवार
करता रहा संघर्श में भी , अपनी मंजिल पाने को
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